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Showing posts from December, 2020

कान जो मेरी ओर लगते हैं!

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B. A. Manakala अपनी धार्मिकता के कारण मुझे छुड़ा और मेरा उद्धार कर , मेरी ओर कान लगा और मुझे बचा। भजन 71:2 थोड़ी दिन पहले मैंने एक बूढ़े व्यक्ति से बात की , जिन्हें कम सुनाई देता है। जब मैंने उनसे बात की तो वह अक्सर अपने दाहिने कान के पीछे अपना दाहिना हाथ रखते हुए अपना कान मेरी ओर कर रहे थे और मैंने जो कहा , उसे दोहराने के लिए कह रहे थे। मुझे उनसे बहुत ऊँची आवाज़ में बात करना पड़ा। भजनकार की प्रार्थना है कि परमेश्वर अपना कान उसकी ओर लगाएँ क्योंकि वह चाहता है कि परमेश्वर उसे बचाएँ और छुड़ाएँ (भजन 71:2)। यहोवा का कान बहरा नहीं है कि हमारी पुकार सुन न सके (यशा 59:1)। परमेश्वर उन लोगों की सुनते हैं जो उनका भय मानते हैं और उनकी इच्छा पूरी करते हैं (यूहन्ना 9:31)। मैं चाहता हूँ कि जब भी मैं क्रोधित होता हूँ और निरर्थक बातें बोलता हूँ , तब प्रभु अपना कान मेरी ओर न लगाएँ! जब परमेश्वर अपना कान मेरी ओर लगाते हैं तब वह क्या सुनते हैं ? केवल प्रभु से ही यह आशा न रखें कि वह अपना कान हमेशा आपकी ओर लगाएँ ; बल्कि अपना कान भी उनकी ओर लगाएँ! प्रार्थना: प्यारे प्रभु जी ,

मैं परमेश्वर के पास क्यों आता हूँ ?

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B. A. Manakala हे यहोवा , मैं तेरी शरण में आया हूँ , मुझे कभी लज्जित न होने दे। भजन 71:1 लगभग दस वर्ष पूर्व मैं अपना मोबाइल फोन केवल बात करने के लिए ही उपयोग करता था। लेकिन आज मैं अपने मोबाइल फोन को सिर्फ बात करने के अलावा: बाइबल पढ़ने , मेरी प्रार्थना विषयों को देखने , समाचार पढ़ने , सुनने या देखने , मनोरंजन करने , कार चलाते वक्त मार्गनिर्देशन करने , कैलक्यूलेटर ( calculator), कैमरा ( camera), रिकॉर्डर ( recorder), आदि कई अन्य कार्यों के लिए भी उपयोग करता हूँ। संक्षेप में कहें तो , यह मेरे कम्प्यूटर ( computer) से भी अधिक कार्य करता है! यह भजन परमेश्वर को जानने के कई लाभ के बारे में बता रहा है: सुरक्षा , बचाव , निर्लज्जता आदि। हमने सच्चे परमेश्वर को जानने के कुछ लाभ ज़रूर सुने होंगे या प्राप्त भी किए होंगे। जब तक हम एक दिन स्वर्ग नहीं पहुँच जाते , मुझे नहीं लगता कि तब तक हम कभी भी परमेश्वर को जानने के सभी लाभ को वास्तव में समझ सकते हैं। पृथ्वी पर रहते हुए परमेश्वर से प्राप्त किए हुए अस्थायी आशीषों से हम कभी भी संतुष्ट न रहें , बल्कि जो अनन्त है , उस बात पर अपना

केवल दीन या ज़रूरतमंद?

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B. A. Manakala मैं तो दीन और दरिद्र हूँ ; हे परमेश्वर , मेरे लिए फुर्ती कर। तू ही मेरा सहायक , मेरा छुड़ाने वाला है ; हे यहोवा , विलम्ब न कर। भजन 70:5 एक व्यक्ति अड़तीस वर्षों से बीमार था और बैतहसदा ( Bethesda) नामक एक कुण्ड के पास पड़ा था। जल के हिलते ही जो भी उसमें पहले उतर जाता था , वो चंगा हो जाता था। प्रभु यीशु ने वहाँ से गुज़रते हुए उससे पूछा , " क्या तुम चंगा होना चाहते हो ?" दीन होना एक बात है और ज़रूरतमंद होना एक अलग बात है। निश्चित रूप से वह व्यक्ति कुण्ड के पास इसलिए था क्योंकि वह चंगा होना चाहता था। और मुझे आश्चर्य होता है कि प्रभु यीशु ने उससे वो प्रश्न क्यों पूछा। हो सकता है कि वह कई वर्षों तक वहाँ रहने के बाद निराश और नाउम्मीद हो गया हो। यदि हम अपनी वर्तमान स्थिति से संतुष्ट हैं तो हम अब ज़रूरतमंद नहीं हैं। वास्तव में , सांसारिक दृष्टिकोण से हम हमेशा ज़रूरतमंद होते हैं और हमारी इच्छाएँ कभी भी खत्म नहीं होती हैं। परन्तु आत्मिक दृष्टिकोण से हम अक्सर निष्क्रिय हो जाते हैं। परमेश्वर हमसे चाहते हैं कि हम आत्मिक रूप से अधिक प्राप्त करते हुए अध

परमेश्वर महान् हैं!

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B. A. Manakala तेरे सब खोजी तुझ में आनन्दित और मग्न हों ; और तेरे उद्धार से प्रेम करने वाले निरन्तर कहें , " परमेश्वर महान् हैं।" भजन 70:4 ' क्रिकेट हमारा धर्म है ' यह एक प्रसिद्ध नारा है जिसे कई भारतीय चिल्लाते हुए बोलते हैं। जो लोग इस खेल को बहुत पसन्द करते हैं और इसके बारे में अत्यन्त उत्साहपूर्ण होते हैं वे इस तरह का नारा प्रदर्शित करेंगे। क्या इनमें से कुछ को हमारे नारे के रूप में माना जा सकता है : ' मुझे व्हाट्सएप्प करो ' (WhatsApp me), ' मैं व्यस्त हूँ ', ' मेरा मोबाइल फोन ', ' चलो , कुछ मज़ा करें ', ' मुझे नौकरी मिल गई है '? हम जो अक्सर बोलते हैं उसी से हमारे जीवन का मूल विषय स्पष्ट दिखाई देगा। ' परमेश्वर महान् हैं ' यह उन लोगों के लिए सबसे उत्तम नारा है जो वास्तव में परमेश्वर को जानते हैं। यदि हम इस वाक्यांश को अधिक से अधिक बार दोहराएँगे तो हम अपने जीवन के साथ-साथ दूसरों के जीवन में भी अपना प्रभाव डालेंगे। यदि मैं पिछले एक सप्ताह को पीछे मुड़कर देखूँ , तो मेरा नारा कैसा रहा होगा ?

शीघ्र सहायता

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B. A. Manakala हे परमेश्वर , मुझे छुड़ाने के लिए , हे यहोवा , मेरी सहायता करने के लिए फुर्ती कर। भजन 70:1 प्रभु यीशु को बताया गया कि उनका प्रिय मित्र लाज़र बीमार था। लेकिन प्रभु यीशु अगले दो दिन और वहीं रहे! जब प्रभु यीशु वहाँ गए तब तक लाज़र मर चुका था और उसका शरीर चार दिनों से कब्र में रखा हुआ था! उसकी बहन मार्था ने प्रभु यीशु से कहा: "यदि आप यहाँ होते तो मेरे भाई की मृत्यु नहीं होती।" जैसे दाऊद चाहता था , वैसे ही हम भी साधारण तौर पर हमारी आवश्यकताओं के लिए शीघ्र सहायता चाहते हैं (भजन 70:1)। परमेश्वर हर कार्य नियुक्त समय पर अच्छी तरह से पूरा करते हैं (सभो 3)। परन्तु परमेश्वर का समय हमेशा हमारे समय के अनुसार नहीं होता है। कभी-कभी ऐसा प्रतीत होता है कि वह ज़रूरत के समय पर हमारी मदद नहीं करते हैं। मानवीय दृष्टिकोण से , मार्था का यह कहना सही था कि प्रभु यीशु देर से पहुँचे इसलिए मेरे भाई की मृत्यु हो गई! उसके भाई लाज़र को मृतकों में से जिलाने के बाद वह शायद समझ गई थी कि परमेश्वर के लिए यह सही समय था। वास्तव में , संकट के समय परमेश्वर हमेशा सहायता करने के लिए

प्रेम और आज्ञाकारिता

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B. A. Manakala उसके दासों के वंशज उसके उत्तराधिकारी बन जाएँगे , और जो उसके नाम से प्रेम करते हैं , उसमें वास करेंगे। भजन 69:36 मुझे खाना बनाने में मज़ा नहीं आता है! लेकिन फिर भी मैं रसोई के कामों में मदद करता हूँ और सप्ताह में एक दिन मैं खाना बनाता हूँ क्योंकि मैं अपने परिवार से प्यार करता हूँ और उनके साथ समय बिताना मुझे अच्छा लगता है। मेरी पत्नी और बेटी खाना बनाना पसन्द करते हैं। मुझे वे सारे पकवान खाना अच्छा लगता है जो वे बनाते हैं , और यह उन्हें और अधिक खाना बनाने के लिए प्रेरित करता है! जो समय हम एक साथ बिताते हैं , वो हमें बहुत अच्छा लगता है। परमेश्वर के द्वारा पृथ्वी पर स्थापित किया गया यह रिश्ता कितना धन्य है! प्रेम और आज्ञाकारिता साथ-साथ चलते हैं। दूसरे शब्दों में , प्रेम की कमी ही अनाज्ञाकारिता का मुख्य कारण है। यदि परमेश्वर और मनुष्यों के साथ हमारा रिश्ता प्रेम से बंधा हुआ है , तो इसके साथ-साथ आनन्द , शान्ति , धीरज , दयालुता , भलाई , विश्वस्तता , नम्रता और संयम , ये भी होंगे (गला 5:22)। दाऊद उन लोगों के लिए उत्तराधिकार और सुरक्षा की बात करता है ज

स्वर्ग और पृथ्वी स्तुति करें!

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B. A. Manakala स्वर्ग और पृथ्वी उसकी स्तुति करें ― और समुद्र भी तथा सब कुछ जो उन में चलता-फिरता है। भजन 69:34 कुछ ही दिन पहले मैंने ऑनलाइन ( online) से एक मेज़ खरीदी। इसके मिलने के बाद इसके सारे हिस्सों को जोड़ना था। भले ही कम्पनी ने हमारे लिए इस काम को कम शुल्क पर जोड़कर देने की बात की थी लेकिन मैं खुद ही इस मेज़ को जोड़ने के लिए उत्सुक था। भले ही मुझे यह काम पूरा करने में कुछ घण्टे लग गए , लेकिन जब मैंने खुद मेज़ को जोड़ने का काम खत्म किया तब मुझे बहुत आनन्द महसूस हुआ। परमेश्वर की सारी सृष्टि परमेश्वर की स्तुति करते हैं (भजन 69:34)! परन्तु निर्जीव वस्तुएँ कैसे स्तुति करते हैं ? आदि में जब परमेश्वर ने सब कुछ सृजा , तब प्रत्येक दिन के अन्त में परमेश्वर ने पाया कि उन्होंने जो कुछ भी सृजा वो अच्छा था। परमेश्वर ने जो कुछ भी बनाया , उसमें आनन्दित हुए। एक बार प्रभु यीशु ने पत्थरों के चिल्ला उठने की बात कही (लूका 19:40)। हमसे यह अपेक्षा की जाती है कि हम हमेशा परमेश्वर की सृष्टि के रूप में परमेश्वर की स्तुति करें। निर्जीव सृष्टि के सदृश नहीं , हम अक्सर परमेश्वर की स्त

दरिद्रों की पुकार

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B. A. Manakala क्योंकि यहोवा दरिद्रों की सुनता और अपने लोगों को जो बन्धुए हैं , तुच्छ नहीं जानता। भजन 69:33 ' गरीबी रेखा ' भारत सरकार द्वारा उन लोगों को श्रेणीबद्ध करने के लिए एक मानदण्ड है , जिन्हें उनकी जीविका के लिए सरकार से सहायता की आवश्यकता होती है। 25% भारतीय आबादी का जीवन गरीबी रेखा से नीचे की है। परमेश्वर दरिद्रों की पुकार सुनते हैं (भजन 69:33)। धनी और निर्धन दोनों इस बात में मिलते हैं - परमेश्वर ही उन सबका सृजनहार है (नीति 22:2)। इसलिए , उन दोनों का अस्तित्व है क्योंकि परमेश्वर अनुमति देते हैं। निर्धन और पीड़ित के लिए परमेश्वर की विशेष देखभाल पवित्रशास्त्र में स्पष्ट दिखता है (भजन 140:12) ; परन्तु परमेश्वर का हमारी प्रार्थनाओं को सुनने के लिए हमें निर्धन होने की ज़रूरत नहीं है। जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं वे हमेशा आत्मिक भोजन की ज़रूरत को महसूस कर सकते हैं। मन के दीन होने (मत्ती 5:3) का अर्थ एक बेहतर आत्मिक परिपक्वता में बढ़ने की हमारी इच्छा के अलावा और कुछ नहीं है। भले ही आत्मिक रूप से हम धन्य हों , फिर भी हम परिपूर्णता से बहुत

नम्र लोग परमेश्वर को देखेंगे

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B. A. Manakala नम्र लोगों ने इसे देखा और मग्न हुए , हे परमेश्वर के खोजियो , तुम्हारा मन हरा-भरा हो जाए। भजन 69:32 एक स्कूल की किसी कक्षा में बहुत शोर हो रहा था , तब वहाँ के प्रधानाचार्य ने खिड़की से झाँक कर देखा। भले ही छात्रों में से एक ने देखा कि कोई उन्हें देख रहा है , पर उसने ध्यान नहीं दिया। लेकिन उनमें से दो छात्रों ने जब देखा कि यह प्रधानाचार्य थे , तब वे बेहद खामोश हो गए और धीरे-धीरे दूसरों को भी चेतावनी दी! दाऊद यहाँ स्वीकार करता है कि केवल नम्र लोग ही परमेश्वर को देख सकते हैं (भजन 69:32)। मूसा पृथ्वी पर सबसे अधिक नम्र व्यक्ति था (गिन 12:3)! और वह बाइबल का एकमात्र ऐसा व्यक्ति है जो प्रभु से आमने-सामने बातें करता था (व्यव 34:10)! जितना अधिक हम नम्र बनेंगे , उतना ही बेहतर रूप से हम अपने परमेश्वर को देखेंगे ; जितना अधिक हम अपने परमेश्वर को देखते हैं उतना ही अधिक हम नम्र बनते हैं! यह एक अद्भुत सम्बन्ध है। हमारे जीवन के द्वारा व्यक्त की गई नम्रता एक सबसे महत्वपूर्ण तरीका है जिनका अन्य लोग परमेश्वर के साथ हमारे सम्बन्धों को मापने के लिए उपयोग करेंगे।

यह यहोवा को प्रसन्न करेगा

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B. A. Manakala यह यहोवा को बैल से अधिक , वरन् सींग और खुर वाले जवान साँड़ से अधिक प्रसन्न करेगा। भजन 69:31 मेरा मित्र और मैं एक घर में मेहमान के रूप में भोजन कर रहे थे। मेरे मित्र ने उन अतिरिक्त व्यंजनों ( side dish) में से एक को जल्दी से खाकर समाप्त कर दिया क्योंकि उसे वो पसन्द नहीं था , ताकि वह बाकी भोजन का आनन्द ले सके। लेकिन उन्हें वही व्यंजन अधिक परोसा गया , क्योंकि मेज़बान को लगा कि उन्हें यह व्यंजन बहुत पसन्द आया! दाऊद को यह कहने का आत्मविश्वास था कि उसकी प्रशंसा , गायन , धन्यवाद और आराधना करने से प्रभु प्रसन्न हुए (भजन 69:30-31)। यदि मैं परमेश्वर को कुछ ऐसा देता रहूँ जिससे वह प्रसन्न न हों , तो यह केवल उस व्यंजन को परोसने जैसा होगा जो मेरे मित्र को पसन्द नहीं था! हमारे हृदय के आवश्यक गुण- व्यवहार , ईमानदारी , प्रेम आदि , इनको परमेश्वर सदा हमारी भेंट के साथ देखते हैं। परमेश्वर सभी भेंटों को स्वीकार नहीं करते हैं! कैन को स्मरण करें (उत्प 4:5)। क्या मैं वास्तव में जानता हूँ कि यहोवा को क्या ग्रहणयोग्य है ? मैं जो भेंट चढ़ाता हूँ , क्या वास्तव में यहोवा उ

मैं स्तुति करूँगा!

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B. A. Manakala मैं गीत गाकर परमेश्वर के नाम की स्तुति करूँगा , और धन्यवाद देकर उसकी बड़ाई करूँगा। भजन 69:30 अपने बच्चों को घर के कामों में शामिल करने के लिए हम माता-पिता उन्हें कुछ रोमांचक इनाम देते हैं। साधारण तौर पर मूल्यांकन और पुरस्कृत करना , सप्ताह के अन्त में ही किया जाता है। एक बार जब उनको इनाम मिलता है तब अगले सप्ताह काम करने के लिए भी उनको प्रेरणा मिलती है। दाऊद की तरह ही , हमें भी परमेश्वर की स्तुति करने की आवश्यकता है क्योंकि उन्होंने हमें पीड़ा और कष्ट से बचाया है (भजन 69:29-30)। कभी-कभी हमें दूसरों की ज़रूरत होती है यह स्मरण दिलाने के लिए कि जो भले कार्य परमेश्वर ने हमारे लिए किए हैं , उनके लिए परमेश्वर की स्तुति करें। परन्तु हमारे जीवन में हर पल परमेश्वर की स्तुति करने का अभ्यास करना महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्होंने जो कुछ भी पृथ्वी पर और हमारे लिए किया है वो प्रशंसनीय है। इसलिए , जो कुछ परमेश्वर ने हमारे लिए व्यक्तिगत रूप से किया है , इस बात पर हमारा परमेश्वर की स्तुति करना निर्भर नहीं होना चाहिए। उन भले कार्यों के लिए जो परमेश्वर ने मेरे लिए

उनके नाम काट दिए जाएँ?

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B. A. Manakala उनका नाम जीवन की पुस्तक में से काट दिया जाए और धर्मियों के साथ लिखा न जाए। भजन 69:28 पिकनिक के दौरान हमने एक विशेष सवारी पर जाने का फैसला किया। हम चार जन थे और उस सवारी के लिए केवल तीन सीटें ही बची थीं। हम में से एक , भले ही उसे जाने की बहुत इच्छा थी , फिर भी स्वेच्छा से कहा , ' मैं बाहर हो जाता हूँ , आप तीनों जा सकते हैं ' । इस वचन में दाऊद अपने शत्रुओं के नाम जीवन की पुस्तक में से काट देने की प्रार्थना करता है (भजन 69:28)! वह उस प्रमाणों की पुस्तक का उल्लेख कर रहा होगा जो इस्राएलियों के लिए बनी होती थी (यहेज 13:9)। जिन लोगों की मृत्यु हो जाती थी , उनके नाम इस पुस्तक से काट दिए जाते थे। हम चाहते हैं कि और भी लोगों के नाम जीवन की पुस्तक में लिखे जाएँ (प्रका 3:5)। एक बार मूसा ने परमेश्वर से प्रार्थना की , कि परमेश्वर की पुस्तक में से उसका नाम काट दिया जाए , यदि परमेश्वर उन लोगों के पापों को क्षमा नहीं कर सकते जिनका मूसा नेतृत्व कर रहा था (निर्ग 32:32)। पौलुस ने भी शापित होने और मसीह से अलग हो जाने की इच्छा व्यक्त की थी , यदि इससे वह

अपने शत्रुओं से प्रेम करो

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B. A. Manakala अपना रोष उन पर भड़का , और तेरे कोप की ज्वाला उन्हें निगल जाए। भजन 69:24 यदि मैं प्रभु यीशु के स्थान पर क्रूस पर होता , और यदि उन लोगों के लिए मेरे मन में थोड़ा सा प्रेम होता , जो मुझे मारना चाहते थे , तो शायद उनके लिए मेरी प्रार्थना कुछ इस तरह होती , ' हे पिता , इन क्रूर लोगों को क्षमा कर दीजिए ... '! ' हे पिता , इन्हें क्षमा करें क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं ', प्रभु यीशु की यह प्रार्थना उनके शत्रुओं के प्रति सच्चे प्रेम को दिखाता है। पुराने नियम की व्यवस्था के आधार पर दाऊद को अपने शत्रुओं पर इन श्रापों की प्रार्थना करने का अधिकार हो सकता है (भजन 69: 22-28)। परन्तु यदि आज मुझे इस प्रकार की श्राप वाली प्रार्थनाओं की आवश्यकता है तो इसका केवल यही अर्थ है कि मैं एक सच्चा मसीही नहीं हूँ। परन्तु प्रभु यीशु ने हमें सिखाया है कि हम अपने शत्रुओं से प्रेम करें और हमें श्राप देने वालों को आशीष दें (लूका 6:28)। शैतान के विरुद्ध खड़े रहें वही हमारा असली शत्रु है ; परन्तु लोगों के साथ ही खड़े रहें। जैसे प्रभु यीशु ने किया था ,  व