स्वर्ग और पृथ्वी स्तुति करें!
B. A. Manakala
स्वर्ग और पृथ्वी उसकी स्तुति करें ― और समुद्र भी तथा सब कुछ जो उन में चलता-फिरता है। भजन 69:34
कुछ ही दिन पहले मैंने ऑनलाइन (online) से एक मेज़ खरीदी। इसके मिलने के बाद इसके सारे हिस्सों को जोड़ना था। भले ही कम्पनी ने हमारे लिए इस काम को कम शुल्क पर जोड़कर देने की बात की थी लेकिन मैं खुद ही इस मेज़ को जोड़ने के लिए उत्सुक था। भले ही मुझे यह काम पूरा करने में कुछ घण्टे लग गए, लेकिन जब मैंने खुद मेज़ को जोड़ने का काम खत्म किया तब मुझे बहुत आनन्द महसूस हुआ।
परमेश्वर की सारी सृष्टि परमेश्वर की स्तुति करते हैं (भजन 69:34)! परन्तु निर्जीव वस्तुएँ कैसे स्तुति करते हैं? आदि में जब परमेश्वर ने सब कुछ सृजा, तब प्रत्येक दिन के अन्त में परमेश्वर ने पाया कि उन्होंने जो कुछ भी सृजा वो अच्छा था। परमेश्वर ने जो कुछ भी बनाया, उसमें आनन्दित हुए। एक बार प्रभु यीशु ने पत्थरों के चिल्ला उठने की बात कही (लूका 19:40)।
हमसे यह अपेक्षा की जाती है कि हम हमेशा परमेश्वर की सृष्टि के रूप में परमेश्वर की स्तुति करें। निर्जीव सृष्टि के सदृश नहीं, हम अक्सर परमेश्वर की स्तुति करने से चूक जाते हैं।
मैं परमेश्वर की स्तुति कैसे कर रहा हूँ?
परमेश्वर की सारी सृष्टि बिना स्मरण दिलाए ही परमेश्वर की स्तुति करते हैं; परन्तु हमें स्मरण दिलाने की आवश्यकता होती है!
प्रार्थना: प्यारे प्रभु जी, आपकी सारी सृष्टि के साथ-साथ मुझे भी आपकी स्तुति करने में मदद कीजिए। आमीन!
(Translated from English to Hindi by S. R. Nagpur)
Comments
Post a Comment