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Showing posts from March, 2021

निज भाग !

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B.A. Manakala "आप अपनी प्रजा का उद्धार कीजिए , और अपनी निज भाग को आशीष दीजिए ; उनकी चरवाही कीजिए और सदैव उन्हें सम्भाले रहिए।" भजन 28:9 अपनी सम्पत्ति में सभी क़ीमती सामान के बारे में सोचें। आप उन वस्तुओं को कितना महत्व देते हैं और उनको कैसे सम्भालते हैं ? क्या आप अपने बटुए को ऐसे ही कहीं भी छोड़ देते हैं , जिसमें आप रुपए सम्भालते हैं ? क्या आप अपनी कार को पार्किंग में बिना ताला लगाए ही छोड़ देते हैं ? कितनी अद्भुत बात है यह जानना कि हम परमेश्वर की निज भाग हैं। क्या आप यह महसूस करते हैं कि आपके लिए परमेश्वर का संरक्षण आपकी कल्पना से भी कहीं बढ़कर है ? वह एक चरवाहे की तरह आपकी अगुवाई करते हैं और आपको अपनी बाहों में उठा लेते हैं (भजन 28:9)। इस पृथ्वी पर रहते हुए आपको इससे अधिक और क्या सुरक्षा चाहिए ? जब आप चलते हैं तो आप अपने पैरों के निशान पीछे छोड़ जाते हैं ; परन्तु जब आप परमेश्वर के साथ चलते हैं तो आपके पीछे कोई निशान नहीं छूटते , क्योंकि आप परमेश्वर की बाहों में होते हैं। प्रार्थना: प्यारे प्रभु जी , मैं आपको धन्यवाद देता हूँ क्योंकि मैं आपकी निज भाग हूँ और आप सदैव मु

उनके कार्यों के अनुसार उनका बदला चुकाना !

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B.A. Manakala "उनके कार्यों और दुष्ट व्यवहारों के अनुसार उनका बदला चुकाइए , उनके हाथों के कार्यों के अनुसार उन्हें बदला दीजिए , उनकी करनी का फल उन्हें दीजिए।" भजन 28:4 "उसने मुझे दो बार मारा ; इसलिए मैंने भी उसे दो बार मारा" ये ऐसे शब्द हैं जो हम अक्सर बच्चों के बीच में सुनते हैं। भजन 103:10 कहता है , " परमेश्वर ने हमारे अधर्म के अनुसार हमें बदला नहीं दिया। " यदि परमेश्वर ने मेरे कार्यों के अनुसार मेरा बदला चुकाया होता तो मुझे पहले ही क्रूस पर चढ़ा दिया गया होता। नए नियम में परमेश्वर केवल प्रभु यीशु मसीह के द्वारा ही हमें देखते हैं , जिनको हमारी ओर से क्रूस पर दण्डित होने के लिए चुना गया। क्या हम अपने शत्रुओं को दण्डित होते हुए देखना चाहते हैं ? जब हमारा शत्रु ठोकर खाके गिरता है तो क्या हम आनन्दित होते हैं ? हम अपने शत्रुओं के लिए जिस नाप से नापते हैं , उसी नाप से परमेश्वर हमारे लिए भी नापेंगे (मत्ती 7:2)। जब दण्डित करने की बात आती है तो दूसरों के लिए हमारा नापना हमारे लिए परमेश्वर के नापने को प्रभावित करता है। प्रार्थना: प्यारे प्रभु जी , मैं आपक

परमेश्वर के द्वारा अनसुनी करना !

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B.A. Manakala हे यहोवा , मैं आप ही को पुकारता हूँ ; हे मेरी चट्टान , मेरी अनसुनी न कीजिए , ऐसा न हो कि आपके चुप रहने से मैं उनके समान बन जाऊँ जो क़ब्र में चले जाते हैं। भजन 28:1 क्या! क्या परमेश्वर कभी भी अनसुनी करते हैं ? व्यर्थ की बात जैसी लगती है! यदि कोई व्यक्ति हमारे कुछ पूछने पर उत्तर नहीं देता है , तो हम समझ सकते हैं कि वह व्यक्ति बहरा है। हम कई कारणों से परमेश्वर को सुन नहीं सकते होंगे जैसे: 1. यदि जो भी आप प्रार्थना में माँगते हैं वो परमेश्वर की परिभाषा के अनुसार "उचित" नहीं है (भजन 84:11) 2. परमेश्वर आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं कि आप खरी चाल चलें (84:11) 3. अभी समय नहीं हुआ है 4. आप विश्वास में और अधिक बढ़ें। यिर्म 33:3 कहता है , " मुझ से प्रार्थना कर और मैं तेरी सुनूँगा …।" परमेश्वर का "अनसुनी" करना हमारे सुनने से भी अधिक सामर्थी होता है! प्रार्थना: प्यारे प्रभु जी , मैं आपको धन्यवाद देता हूँ क्योंकि जब भी मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ तो आप सुन कर उत्तर देते हैं। आमीन!   (Translated from English to Hindi by S. R. Nagpur)

मेरे माता - पिता ने मुझे छोड़ दिया !

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B.A. Manakala मेरे माता-पिता ने तो मुझे छोड़ दिया है , परन्तु यहोवा मुझे सम्भाल लेंगे। भजन 27:10 अपनी 11वीं कक्षा में पढ़ते समय कैंसर से मेरी माँ की मृत्यु हुई , और इससे मैं बहुत टूट गया था! जबकि वो समय मेरे लिए बहुत कठिन था , आखिरकार इस घटना की वजह से मैंने अपना पूरा जीवन प्रभु की सेवा करने का निर्णय लिया , इससे मेरे जीवन में मेरी माँ का खालीपन भर गया। यहाँ तक कि हमारे माता-पिता जो हमसे प्यार करते हैं , वे भी शायद हमारे साथ लम्बे समय तक नहीं रहेंगे। अक्सर माता-पिता यह सोचते हैं कि वे अपने बच्चों के लिए पूरी तरह से ज़िम्मेदार हैं। क्या यह माता-पिता की ज़िम्मेदारी नहीं है जो अपने बच्चों को कैसे जीना चाहिए , यह सिखाते हैं और उन्हें सही रास्ते की ओर ले चलते हैं ? यदि यह सच होता तो दाऊद ऐसी प्रार्थना नहीं करता , ' हे यहोवा , मुझे अपना मार्ग सिखाइए , और समतल पथ पर मेरी अगुवाई कीजिए ... ' ( वचन 11)। हमारे माता-पिता के बजाय वास्तव में परमेश्वर ही हैं जो हमारे लिए ज़िम्मेदार हैं। आगे सोचें तो , क्या हमारे बच्चों के लिए भी केवल परमेश्वर ही ज़िम्मेदार नहीं हैं ? यदि मेरे माता-पिता भी मुझ

ऊँचे चट्टान के ऊपर छिपा लेना

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B.A. Manakala विपत्ति के दिन तो वह मुझे अपने मण्डप में छिपा रखेंगे , वह मुझे अपने तम्बू के गुप्त स्थान में छिपा लेंगे , वह मुझे चट्टान पर चढ़ा देंगे। भजन 27:5 राजस्थान में चित्तौड़गढ़ किले के चारों ओर उस प्रदेश में जो पर्वत हैं , वहाँ पर चलना मुझे आज भी याद है। सामान्य तौर पर पहाड़ियों पर जो किले बनाए जाते हैं वहाँ शत्रु आसानी से नहीं पहुँच सकते। हमें एक मज़बूत चट्टान पर खड़ा किया गया है , जहाँ शत्रु नहीं पहुँच सकते , जहाँ आप अपने शत्रुओं के सामने सिर उठाकर खड़े रह सकते हैं , जो आपको घेरे हुए हैं (वचन 6)। आज , हमारी नींव एक मज़बूत चट्टान है , जो प्रभु यीशु मसीह हैं। 1 कुरि 3:11 कहता है , " क्योंकि उस नींव को छोड़ जो पड़ी है- और वह यीशु मसीह है- कोई दूसरी नींव नहीं डाल सकता।" जब आपको यह एहसास नहीं होता कि आप एक मज़बूत चट्टान पर खड़े हैं तब आप गिरने लगते हैं। प्रार्थना: प्यारे प्रभु जी , मैं आपको धन्यवाद देता हूँ कि आपने मुझे मज़बूत चट्टान पर खड़ा किया है। अपने शत्रु के सामने भी इस सच्चाई के एहसास को हमेशा समझने में मेरी मदद कीजिए। आमीन!   (Translated from English to Hindi by S

प्रभु से एक वर माँगना

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B.A. Manakala मैंने यहोवा से एक वर माँगा है , मैं उसी के यत्न में लगा रहूँगा: कि मैं अपने जीवन भर यहोवा के भवन में ही निवास करने पाऊँ , जिस से यहोवा की मनोहरता निहारता रहूँ और उसके मन्दिर में उसका ध्यान करता रहूँ। भजन 27:4    यदि आपको परमेश्वर से सिर्फ एक वर माँगने का अवसर दिया जाए , तो आप क्या माँगना चाहेंगे ? एक बार जब सुलैमान को ऐसा अवसर मिला तो उस ने बुद्धि का वर माँगा। परमेश्वर ने उसे बुद्धि और धन-सम्पत्ति दोनों दिया। परन्तु यह संदेहपूर्ण है कि क्या उसकी बुद्धि और धन-सम्पत्ति ने उसे अपने जीवन के अन्त समय तक परमेश्वर की इच्छानुसार जीवन बिताने में मदद की या नहीं। दाऊद ने एक वर माँगा: कि मैं अपने जीवन भर यहोवा के भवन में ही निवास करने पाऊँ (वचन 4) ।   जिन विषयों के लिए हम परमेश्वर से माँगते और प्रार्थना करते हैं , आइए हम उन विषयों पर ध्यान दें। हमारी प्रार्थनाओं में से कितनी ऐसी प्रार्थनाएँ हैं , जिनका कोई अनन्त मूल्य है ? यदि आप केवल एक ही विषय के लिए प्रार्थना करते हैं , तो वो केवल ऐसा कुछ होने दें , जिसका अनन्तकाल तक मूल्य हो। प्रार्थना: प्यारे प्रभु जी , मैं आपका धन्यवाद

निर्दोष व्यक्ति ?

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B.A. Manakala हे यहोवा , मुझे निर्दोष ठहरा , क्योंकि मैं खराई से चलता आया हूँ , और मैंने यहोवा पर अटल भरोसा रखा है। भजन 26:1 क्या एक व्यक्ति वास्तव में निर्दोष हो सकता है ? असम्भव , है न ? यीशु ही पृथ्वी पर एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जो पूरे सौ प्रतिशत निर्दोष थे। कोई भी खुद को निर्दोष नहीं बना सकता! जब हम अपने पाप के स्वभाव को मानकर पश्चाताप करते हैं तो मसीह के द्वारा हमें परिपूर्ण बनाया जाता है। विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से उद्धार सम्भव है , यह हमारे कुछ बोलने या किसी कार्यों के कारण नहीं (इफि 2:8-9)। हम केवल इसलिए निर्दोष हैं क्योंकि प्रभु यीशु मसीह के ज़रिए परमेश्वर हमें देखते हैं। 1 तीमु 2:5 कहता है , " क्योंकि , परमेश्वर एक ही हैं और परमेश्वर तथा मनुष्यों के बीच एक ही मध्यस्थ भी हैं , अर्थात् मसीह यीशु , जो मनुष्य हैं। " आप प्रभु यीशु मसीह में विश्वास करते हैं , इसलिए आप निर्दोष हैं! प्रार्थना: प्रेमी पिता परमेश्वर , मैं आपको धन्यवाद देता हूँ कि आपने अपने पुत्र यीशु मसीह के द्वारा मुझे निर्दोष बनाया। आप में जीवन व्यतीत करना जारी रखने में मेरी मदद कीजिए। आमीन!

लज्जित होना, लज्जित होना ?

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B.A. Manakala मेरे प्राण की रक्षा करके मुझे छुड़ा लें ; मैं लज्जित न होने पाऊँ , क्योंकि मैं तेरी शरण लेता हूँ। भजन 25:20 जीवन में आप किस बात से लज्जित महसूस करते हैं ? एक असफल प्रयास ? वित्तीय संकट ? भयानक रोग ? या कि आप दूसरों की तरह प्रसिद्ध नहीं हैं ? हम कई कारणों से लज्जित हो सकते हैं। जैसा कि भजनकार प्रार्थना करता है , जब हम परमेश्वर की शरण लेते हैं तो हम कभी भी लज्जित नहीं होंगे। भजन 34:5 कहता है , " जिन्होंने उनकी ओर देखा उन्होंने ज्योति पाई , और उनका मुँह कभी काला न होगा। " यदि हम किसी बात पर लज्जित महसूस करते हैं , तो हमें खुद से ही यह पूछना पड़ सकता है कि क्या हमारा भरोसा परमेश्वर पर है या नहीं। जितना अधिक आप परमेश्वर की ओर देखते हैं , उतना ही अधिक आप प्रकाशमान बनेंगे! प्रार्थना: प्यारे प्रभु जी , मेरे पापों और मेरी लज्जा को क्रूस पर उठाने के लिए आपका धन्यवाद। हर समय आपकी शरण में रहने में मेरी मदद कीजिए। आमीन!   (Translated from English to Hindi by S. R. Nagpur)

मेरी आँखें परमेश्वर की ओर हैं या उनकी आँखें मुझ पर हैं ?

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B.A. Manakala मेरी आँखें निरन्तर यहोवा की ओर लगी रहती हैं , क्योंकि वही मेरे पैरों को जाल में से छुड़ाएँगे। भजन 25:15 दाऊद के समान ही हम भी ऐसा सोच सकते हैं कि हमारी आँखें हमेशा परमेश्वर पर हैं। लेकिन क्या वास्तव में हमारी आँखें हमेशा परमेश्वर पर हैं ? हो सकता है कि सुबह और शाम हम अर्थपूर्ण ढंग से परमेश्वर की ओर देखते हों ; परन्तु दिन के बाकी समय का क्या ? वास्तव में हम मनुष्य परमेश्वर की ओर निरन्तर अपनी आँखें नहीं लगा सकते हैं। संकुचित सोच के होने के कारण हम परमेश्वर से यह भी कह सकते हैं जैसा दाऊद ने 16 वचन में कहा , " मेरी ओर फिरें और मुझ पर अनुग्रह करें ..."। सच्चाई यह है कि परमेश्वर की आँखें सदा हमारी ओर लगी रहती हैं। अय्यूब 34:21 कहता है , " क्योंकि परमेश्वर की आँखें मनुष्य के चालचलन पर लगी रहती हैं , वह उसके पग पग को देखते हैं। " भजन 34:15 कहता है " यहोवा की आँखें धर्मियों पर लगी रहती हैं ..."। परमेश्वर की आँखें सदा हमारी ओर लगी रहती हैं , भले ही हम उनसे दूर भी हो जाएँ! प्रार्थना: प्यारे प्रभु जी , आपको धन्यवाद देता हूँ कि आपकी आँखें सदा मे