मैं स्तुति करूँगा!
B. A. Manakala
मैं गीत गाकर परमेश्वर के नाम की स्तुति करूँगा, और धन्यवाद देकर उसकी बड़ाई करूँगा। भजन 69:30
अपने बच्चों को घर के कामों में शामिल करने के लिए हम माता-पिता उन्हें कुछ रोमांचक इनाम देते हैं। साधारण तौर पर मूल्यांकन और पुरस्कृत करना, सप्ताह के अन्त में ही किया जाता है। एक बार जब उनको इनाम मिलता है तब अगले सप्ताह काम करने के लिए भी उनको प्रेरणा मिलती है।
दाऊद की तरह ही, हमें भी परमेश्वर की स्तुति करने की आवश्यकता है क्योंकि उन्होंने हमें पीड़ा और कष्ट से बचाया है (भजन 69:29-30)। कभी-कभी हमें दूसरों की ज़रूरत होती है यह स्मरण दिलाने के लिए कि जो भले कार्य परमेश्वर ने हमारे लिए किए हैं, उनके लिए परमेश्वर की स्तुति करें। परन्तु हमारे जीवन में हर पल परमेश्वर की स्तुति करने का अभ्यास करना महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्होंने जो कुछ भी पृथ्वी पर और हमारे लिए किया है वो प्रशंसनीय है। इसलिए, जो कुछ परमेश्वर ने हमारे लिए व्यक्तिगत रूप से किया है, इस बात पर हमारा परमेश्वर की स्तुति करना निर्भर नहीं होना चाहिए।
उन भले कार्यों के लिए जो परमेश्वर ने मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से किए हैं, उनके लिए ही केवल नहीं, परन्तु मैं सदा के लिए परमेश्वर की स्तुति कैसे करता हूँ?
हमारे लिए परमेश्वर का कार्य नियमबद्ध नहीं है; परन्तु अक्सर हम मनुष्य नियमबद्ध होते हैं!
प्रार्थना: प्यारे प्रभु जी, सारे भले कार्य जो आपने किए हैं, उसे देखने के लिए मेरी आँखें खोल दीजिए, ताकि मैं निरन्तर आपकी स्तुति करता रहूँ। आमीन!
(Translated from English to Hindi by S. R. Nagpur)
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