मान लेना !
मैंने आपके सामने अपना पाप मान लिया और अपना अधर्म न छिपाया। मैंने कहा, “मैं अपने अपराध यहोवा के सामने मान लूँगा,” तब आप ने मेरे पाप के दोष को क्षमा कर दिया। भजन 32:5
आप
कितनी बार परमेश्वर के सामने अपने अपराधों को मानते हैं, या
स्वीकार करते हैं? एक दयालु परमेश्वर के सामने
अपने अपराध को मान लेना साधारण तौर पर आसान है। लेकिन जितनी बार सम्भव हो सके उतनी
बार हमें ऐसा करना ज़रूरी है, क्योंकि हम कई तरह से पाप
करते हैं।
मनुष्यों
के सामने अपने अपराध को मानना शायद सबसे कठिन काम है। याकूब 5:16 हमें प्रोत्साहित
करता है कि हम आपस में अपने पापों को मान लें। इस वचन के अनुसार कुछ हद तक हमें
धर्मी बनाया गया है क्योंकि हम अपने अपराध मान लेते हैं। केवल परमेश्वर ही हमें
धर्मी बना सकते हैं; परन्तु हम उस प्रक्रिया की
शुरुआत कर सकते हैं।
जब हम
किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध अपराध करते हैं तो यह बहुत ही महत्वपूर्ण बात है कि
हम परमेश्वर और उस व्यक्ति दोनों के सामने अपने अपराध को मान लें।
परमेश्वर
और दूसरों के सामने अपने अपराधों को मान लेने से धार्मिकता
आरम्भ होती है।
प्रार्थना:
प्यारे प्रभु जी, ज़रूरत
पड़ने पर, दूसरों
के सामने भी अपने अपराध को मानने के लिए मुझे हिम्मत दीजिए। आमीन!
(Translated from
English to Hindi by S. R. Nagpur)
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