परमेश्वर को क़दम बढ़ाने दें ...

B. A. Manakala

अपने क़दम अनन्त खण्डहरों की ओर बढ़ा, अर्थात् उस सारे विनाश की ओर जो शत्रु ने पवित्रस्थान में किया है। भजन 74:3

मुझे स्कूल के उन दिनों की बहुत शोर भरी कक्षाएँ अभी भी बहुत अच्छे से याद हैं। जब भी प्रधानाचार्य अन्दर आते थे, तो ऐसा सन्नाटा छा जाता था कि मैं अपने दोस्तों को साँसें लेते हुए भी सुन सकता था!

जब आदम ने पाप किया था, तब अदन की वाटिका में परमेश्वर ने पहली बार अपना क़दम रखा (उत्पत्ति 3:8)। बाद में परमेश्वर देहधारी हुआ और पृथ्वी पर हमारे बीच में वास किया (यूहन्ना 1:14)। परमेश्वर को हमारे मध्य में क़दम रखने देने से वह हमारे परमेश्वर और हम उनकी सन्तान बन जाते हैं (लैव्य 26:12)। एक बार जब प्रभु यीशु के चेले समुद्र में एक तूफान में फँस गए थे, तब प्रभु यीशु पानी पर चलते हुए नाव पर चढ़ गए; फिर हवा थम गई और सब कुछ शान्त हो गया (मत्ती 14:32)। परमेश्वर से हमारे मध्य में क़दम रखने का आग्रह करना ही हमारी समस्याओं का समाधान पाने का सबसे उत्तम तरीका है।

क्या मैं परमेश्वर को अपने जीवन की समस्याओं पर क़दम रखने देता हूँ?

जितना अधिक हम परमेश्वर को क़दम रखने देंगे, उतना ही कम हमें स्वयं को क़दम रखने की ज़रूरत पड़ेगी।

प्रार्थना: प्यारे प्रभु जी, कृपया मेरे, मेरे मित्रों और आपके द्वारा सृजे गए प्रत्येक मनुष्य के साथ क़दम बढ़ाएँ। आमीन!

 

(Translated from English to Hindi by S. R. Nagpur)

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