तरस खाना और बचाना

B. A. Manakala

वह कंगाल और दरिद्र पर तरस खाएगा, और दरिद्रों के प्राण बचाएगा। भजन 72:13

एक बार एक व्यक्ति पर लुटेरों ने हमला कर के उसे सड़क पर घायल अवस्था में अकेला छोड़ दिया। उस मार्ग से एक याजक आ रहा था, उसने उसे देखा तो कतरा कर चला गया। तब मन्दिर के एक सहायक ने उस व्यक्ति को वहाँ पड़ा पाया, परन्तु वह भी अपने रास्ते पर चला गया। फिर एक दयालु व्यक्ति वहाँ आया, उसे प्राथमिक चिकित्सा (first aid) देकर उसे अस्पताल ले गया, और उसके पूर्ण उपचार के लिए भुगतान करने का वादा भी किया।

किसी की परिस्थिति पर तरस खाना एक बात है, और उस परिस्थिति में से उसे बचाना एक अलग बात है। बहुत से लोग गरीबों और ज़रूरतमंदों पर तरस खाते हैं; परन्तु बहुत कम लोग उन्हें बचाने का प्रयत्न करते हैं। ऊपर दिए गए वचन में दरिद्रों पर तरस खाने और उन्हें बचाने के बारे बताया गया है (भजन 72:13)।

क्या मुझे ज़रूरतमंदों पर केवल तरस ही आता है, या जब भी मुझे अवसर मिले, तब क्या मैं उनकी मदद करता हूँ?

यह अच्छा है यदि हम दरिद्रों पर तरस खाते हैं; परन्तु यदि हम उन्हें बचाने के लिए कुछ कर सकते हैं, तो यह उससे भी बेहतर होगा।

प्रार्थना: प्यारे प्रभु जी, जैसा आप महसूस करते और कार्य करते हैं, वैसा ही हृदय मुझे भी दीजिए। आमीन!

 

(Translated from English to Hindi by S. R. Nagpur)

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