पर्वतों पर समृद्धि

B. A. Manakala

इन लोगों के लिए पर्वतों से समृद्धि के, और पहाड़ियों से धार्मिकता के फल उत्पन्न हों। भजन 72:3

मेरा जन्म और पालन-पोषण समतल क्षेत्र में हुआ था। यहाँ तक कि इस क्षेत्र में छोटी पहाड़ियों को भी खेती के लिए उपयोग नहीं किया जाता था और किसी कारण से बेकार भूमि माना जाता था।

हमारे दृष्टिकोण से देखें तो कभी-कभी वे बंजर भूमि की तरह दिखते हैं, परन्तु परमेश्वर पर्वतों और पहाड़ियों को समृद्ध और उपजाऊ बना सकते हैं (भजन 72:3)। मुझे कई वर्षों तक पर्वतों में रहने का अवसर मिला; परन्तु वे पर्वत फलों, सब्ज़ियों और कई तरह की दाल से उपजाऊ थे। परमेश्वर के साथ अंधकार में भी प्रकाश होता है, निराशा में भी आशा होती है, बीमारी में भी अच्छा स्वास्थ्य होता है और पर्वतों पर भी समृद्धि होती है।

भूमि पर कठोर परिश्रम करने (नीति 12:11), और देख-भाल करने (उत्प 2:15) की ज़िम्मेदारी हमारी है, जो समृद्धि प्राप्त करने में योगदान देता है। परमेश्वर हमें और अधिक समृद्ध बनाने के लिए हमारे साथ परिश्रम करना चाहते हैं।

क्या मैं समृद्धि की ओर बढ़ने में अपनी भागीदारी निभाने के लिए तैयार हूँ?

समृद्धि उन लोगों की प्रतीक्षा करती है जो परमेश्वर के साथ कठोर परिश्रम करते हैं; यह उन लोगों के लिए एक सपना बनके रह जाता है जो आलसी होते हैं!

प्रार्थना: प्यारे प्रभु जी, आपके साथ-साथ मुझे भी कठोर परिश्रम करने में मदद कीजिए, ताकि मैं आपकी इच्छानुसार समृद्ध हो सकूँ। आमीन!

 

(Translated from English to Hindi by S. R. Nagpur)

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