दलदल में धँसना
B. A. Manakala
मैं गहरे दलदल में धँसा जाता हूँ, मेरे पैरों के लिए कोई आधार नहीं। मैं गहरे जल में आ फँसा हूँ और जल-धारा मुझे डुबाए जा रही है। भजन 69:2
दलदल सबसे खतरनाक जगहों में से एक है, विशेष कर जब आप अकेले हों और मदद करने वाला कोई भी आस-पास न हो। आप बच निकलने के अपने सभी प्रयासों के बावजूद भी डूबते ही रहेंगे!
हम अक्सर इस दुनिया के बाढ़ के पानी और दलदल में डूब जाते हैं। केवल परमेश्वर ही हमें इस तरह की दलदल की मिट्टी से बचा सकते हैं (भजन 69:1-2)। जब परमेश्वर ने हमारे हाथों को थामा हुआ है तब हम डूब नहीं सकते। परन्तु जब तक हम दुनिया में रह रहे हैं तब तक हमारे आस-पास ऐसा बहुत कुछ होता है जो हमें डुबा सकती हैं। हम अक्सर परमेश्वर से दूर भागते हैं और इस दुनिया की समस्याओं में डूब जाते हैं।
जो लोग इस दुनिया में डूब रहे हैं, हम उन लोगों की मदद करने और उनकी भलाई करने के लिए बुलाए गए हैं। परन्तु यदि हम स्वयं अपनी समस्याओं में ही डूब रहे हैं, तो हम दूसरे लोगों की मदद कैसे कर पाएँगे?
एक बार जब आप दलदल में धँस जाते हैं, तब उसमें पैर रखने की जगह पाना भी लगभग असम्भव होता है!
प्रार्थना: प्यारे प्रभु जी, मुझे आपसे दूर भागते हुए समस्याओं की ओर कभी भी न जाने दीजिए। आमीन!
(Translated from English to Hindi by S. R. Nagpur)
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