प्रार्थना में स्तुति करना
B. A. Manakala
मैंने अपने मुँह से उसे पुकारा, और उसका गुणानुवाद मेरी जीभ से हुआ। भजन 66:17
अभी कुछ ही समय में, हमारे परिवार में हमने एक साथ बैठकर एक दूसरे व्यक्ति के गुणों के बारे में बात करने का फैसला किया। यह हमारे आपस में एक घनिष्ठ सम्बन्ध बनाता है।
हम अक्सर दूसरे लोगों की अच्छाइयाँ ढूँढ़ने के बजाए उनकी गलतियाँ निकालना अधिक पसन्द करते हैं। किसी तरह से यह मनोभाव परमेश्वर के साथ हमारे सम्बन्ध में भी प्रकट होता है। हम साधारण तौर पर परमेश्वर को सिर्फ एक प्रबन्ध करने वाले के रूप में ही सोचते हैं। कम से कम जितनी बार हम प्रार्थना करते हैं, उतनी बार परमेश्वर हमें उनकी स्तुति करते हुए सुनना पसन्द करते हैं। भजनकार ने प्रार्थना में स्तुति करने को शामिल किया (भजन 66:17)। परमेश्वर ही सबसे अधिक स्तुति के योग्य हैं (भजन 145:1)। जितनी बार सम्भव हो अक्सर दूसरे लोगों की प्रशंसा और परमेश्वर की स्तुति करना सीखना अच्छा है। यह भी एक सबसे उत्तम बात है कि यदि दूसरे लोग आपकी प्रशंसा आपकी योग्यता के अनुसार नहीं भी करते हैं तो भी हम आगे बढ़ना सीखें।
जब दूसरे लोग आपकी प्रशंसा करते हैं तो आप कैसा महसूस करते हैं? आप परमेश्वर की स्तुति करने के लिए वो कौन सा कदम उठाएँगे?
जितना अधिक हम अपनी प्रार्थनाओं में परमेश्वर की प्रशंसा या स्तुति करना शामिल करते हैं, उतना ही परमेश्वर के साथ हमारे सम्बन्ध अधिक घनिष्ठ बन जाते हैं!
प्रार्थना: प्यारे प्रभु जी, चाहे कितनी भी कठिन परिस्थिति क्यों न हो, आपकी स्तुति करते रहने के लिए हर सम्भव प्रयत्न करना मुझे सिखाइए। आमीन!
(Translated from English to Hindi by S. R. Nagpur)
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