संकट में मन्नत मानना
B. A. Manakala
वो पवित्र मन्नतें, जो संकट के समय मेरे होठों ने मानी और मेरे मुँह ने कहीं। भजन 66:14
एक माँ ने बताया "जन्म के कुछ ही दिनों के भीतर मेरा बेटा गम्भीर रूप से बीमार हो गया था। मैंने प्रभु से एक प्रतिज्ञा की, कि अगर परमेश्वर मेरे बच्चे को बीमारी से चंगा करेंगे, तो वह प्रभु की सेवा के लिए अलग किया जाएगा"।
जैसा कि हम इस भजन में देखते हैं कि जब हम संकट में पड़ जाते हैं, तब हमारी यह प्रकृति होती है कि हम परमेश्वर से प्रतिज्ञा करते हैं (भजन 66:14)। और यह शायद संकट में से बाहर निकलने का एक अच्छा तरीका है। शायद, जैसे कि किसी से प्रतिज्ञा करवाने, परमेश्वर की आज्ञा मानने या परमेश्वर की योजना उनके जीवन में पूरा करने के लिए, कभी-कभी परमेश्वर समस्याओं का कुछ इस तरह से उपयोग करते होंगे। हमारे लिए यह बेहतर होगा कि समस्याओं का इंतज़ार न करते हुए जब कभी प्रभु हमसे चाहें हम प्रभु से प्रतिज्ञाएँ करें। यह भी स्मरण रखें कि मन्नत मान कर उसे पूरी न करने की अपेक्षा मन्नत का न मानना ही अच्छा है (सभो 5:5)।
आप इस बात को कैसे महसूस कर पाएँगे कि परमेश्वर आपसे चाह रहे हैं कि आप कोई प्रतिज्ञा करें?
प्रभु के द्वारा सूचित करने पर प्रतिज्ञा करने में कभी भी संकोच न करें; आप प्रभु की प्रतिज्ञाओं को पूरा करने के लिए दृढ़ संकल्पित रहें।
प्रार्थना: प्यारे प्रभु जी, आप जैसा मुझसे चाहते हैं वैसी प्रतिज्ञा करने और उन्हें पूरा करने में मेरी सहायता कीजिए। आमीन!
(Translated from English to Hindi by S. R. Nagpur)
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