वास्तविक संतुष्टि
27 September 2020
B. A. Manakala
मेरा प्राण मानो चर्बी और चिकनाई से तृप्त हुआ है, और मेरा मुँह हर्षित होंठों से तेरी स्तुति करता है। भजन 63:5
एक बार एक भिखारी मेरे पास आया और मुझे उस पर दया आ गई। मैंने उस व्यक्ति को स्नान कराया, उसके कपड़े बदले और उसे एक मनोरंजन पार्क में ले गया। मैंने देखा कि वह अभी भी उदास ही था। दिन के अंत में उसने मुझसे पूछा, 'क्या मुझे खाने के लिए कुछ मिल सकता है?' भोजन करने के बाद ही उस व्यक्ति का चेहरा खिल उठा।
यहाँ तक कि इस पृथ्वी का सबसे पौष्टिक भोजन भी आपको पूरी तरह से संतुष्ट नहीं कर सकता है। दाऊद परमेश्वर से संतुष्टि का अनुभव करता है (भजन 63:5)। जब तक हम यह नहीं पहचान लेते कि वो क्या है जो हमें वास्तव में संतुष्ट कर सकता है, हम अपना बहुत सारा समय और ताकत बर्बाद कर रहे होंगे।
भोजन, वस्त्र, रहने का स्थान, सम्पत्ति और स्वास्थ्य सहित पृथ्वी पर हमारे पास जो कुछ भी है, वो सब परमेश्वर के द्वारा दिया गया है; लेकिन वे हमें केवल पल भर के लिए ही संतुष्ट कर सकते हैं।
आपके जीवन में प्रभु यीशु के होने के बाद भी, क्या आप असंतुष्ट हैं?
आप इसके कारण को कैसे पहचानेंगे?
इससे पहले कि आप अपने आप को हर सम्भव चीज़ से संतुष्ट करने का प्रयत्न करें, असन्तुष्टि के मूल कारण को पहचानें।
प्रार्थना: प्यारे प्रभु जी, कृपया मुझे प्रतिदिन अपनी उपस्थिति से संतुष्ट कीजिए। आमीन!
(Translated from English to Hindi by S. R. Nagpur)
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