आप में क्या योग्यता है?
19 सितंबर 2020
B. A. Manakala
नीच लोग श्वासमात्र, और बड़े लोग मिथ्या ही हैं; तुला में उनका पलड़ा ऊपर उठ जाता है, वे सब के सब श्वास से भी हल्के पड़ते हैं। भजन 62:9
कुछ समय पहले मैंने एक अनाथालय का दौरा किया। वहाँ एक बुद्धिमान और रूपवान लड़का था। मुझे यह सुनकर बड़ा झटका लगा कि वह अपनी माँ के द्वारा एक लाख रुपयों (₹ 100,000) में बेचा गया था!
आप जैसा स्वयं को पेश करते हैं, उस पर आधारित यदि आप अपने आप को मापते हैं तो आप सिर्फ श्वासमात्र ही हैं। परन्तु यदि आप उस हवा का श्वास लेना जारी रखते हैं जो श्वास आरम्भ में आप में फूंकी गई थी, तो आप जो सोचते हैं उससे कहीं अधिक आप योग्य हैं। (उत्प 2:7)
जो भी हम सोचते हैं कि भौतिक रूप से हम योग्यता रखते हैं, एक दिन वो सब कुछ खत्म हो जाएगा। परन्तु आत्मिक रूपी आपकी योग्यता अनन्तकाल का मूल्य रखती है।
क्या आपकी आत्मा से अधिक कुछ भी मूल्यवान है? (मत्ती 16:26)
अन्य लोग आपकी भौतिक संपत्ति के आधार पर आपको मूल्य दे सकते हैं; परन्तु परमेश्वर आपको आत्मिक रूप से महत्व देते हैं!
प्रार्थना: प्यारे प्रभु जी, मुझे यह समझने में सहायता कीजिए कि आपकी वजह से मेरी योग्यता क्या है। आमीन!
नीच लोग श्वासमात्र, और बड़े लोग मिथ्या ही हैं; तुला में उनका पलड़ा ऊपर उठ जाता है, वे सब के सब श्वास से भी हल्के पड़ते हैं। भजन 62:9
कुछ समय पहले मैंने एक अनाथालय का दौरा किया। वहाँ एक बुद्धिमान और रूपवान लड़का था। मुझे यह सुनकर बड़ा झटका लगा कि वह अपनी माँ के द्वारा एक लाख रुपयों (₹ 100,000) में बेचा गया था!
आप जैसा स्वयं को पेश करते हैं, उस पर आधारित यदि आप अपने आप को मापते हैं तो आप सिर्फ श्वासमात्र ही हैं। परन्तु यदि आप उस हवा का श्वास लेना जारी रखते हैं जो श्वास आरम्भ में आप में फूंकी गई थी, तो आप जो सोचते हैं उससे कहीं अधिक आप योग्य हैं। (उत्प 2:7)
जो भी हम सोचते हैं कि भौतिक रूप से हम योग्यता रखते हैं, एक दिन वो सब कुछ खत्म हो जाएगा। परन्तु आत्मिक रूपी आपकी योग्यता अनन्तकाल का मूल्य रखती है।
क्या आपकी आत्मा से अधिक कुछ भी मूल्यवान है? (मत्ती 16:26)
अन्य लोग आपकी भौतिक संपत्ति के आधार पर आपको मूल्य दे सकते हैं; परन्तु परमेश्वर आपको आत्मिक रूप से महत्व देते हैं!
प्रार्थना: प्यारे प्रभु जी, मुझे यह समझने में सहायता कीजिए कि आपकी वजह से मेरी योग्यता क्या है। आमीन!
(Translated from English to Hindi by S. R. Nagpur)
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