सशक्त हैं शब्द !

B.A. Manakala
देखो, वे मुँह से डकारते हैं, उनके होंठों में तलवारें हैं; क्योंकि वे कहते हैं, "कौन सुनता है?" भजन 59:7

जब मैं छोटा था, मेरे हाथों से एक कीमती कप गिर कर टूट गया था। तब मेरी माँजी ने मुझसे कहा 'कोई बात नहीं, तुम चिंता मत करो'। उस पल मैं बहुत ही घबरा गया था। लेकिन मैं अभी भी अपनी माँजी के उन शब्दों को याद करता हूँ!

"मधुर वचन मधु के छत्ते के समान होते हैं। वे प्राण के लिए मीठे और हड्डियों को चँगाई देने वाले होते हैं"  (नीति 16:24)। हम सभी जानते हैं कि "शब्द" बहुत प्रभावशाली हो सकते हैं और ये शब्द दूसरों की हानि भी कर सकते हैं या आशीषित भी कर सकते हैं।

हम जो शब्द बोलते हैं, वह हमारे आंतरिक मनुष्य की बाहरी भावनाएँ हैं। पवित्र आत्मा, जो हमारे जीवन में कार्य करते हैं, वह हमारे अन्दर आत्मा के फल, जैसे, प्रेम, धैर्य और सौम्यता आदि, को उत्पन्न करते हैं, जो आशीष के शब्दों को उत्पन्न करते हैं।

क्या आपको दूसरों के शब्दों से चोट पहुँची है? क्या आपने उन्हें माफ कर दिया है? जो चोट नहीं पहुँचाते, ऐसे शब्दों का उपयोग करने में आप पवित्र आत्मा पर कैसे भरोसा कर सकते हैं?

शब्द और तलवार दोनों से ही चोट पहुँचती है; लेकिन शब्दों से लगे घाव, तलवार से लगे घाव से भी अत्यंत बुरा होता है और उन घाव को भरना बहुत कठिन होता है!

प्रार्थना: प्यारे प्रभु जी, मुझे अपनी आत्मा से इतना भर दीजिए ताकि मैं अपने शब्दों के द्वारा हमेशा दूसरे लोगों को आशीषित कर सकूँ। आमीन!

(Translated from English to Hindi by S. R. Nagpur)

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